Freitag, 26. Juni 2009

जिस चूत को ढूंडा उन्होंने सारे देश मै वो उनको परदेस मै जाकर मिली

जिस चूत की थी उनको बचपन से तलब वो खुद बा खुद उनको आकर मिली
जिस चूत को ढूंडा उन्होंने सारे देश मै वो उनको परदेस मै जाकर मिली

चूत की बस एक झलक ने कर दिया था उनको दंग
फिर बिस्तर क्या था वो थी मैदाने जंग
राहत उनको फिर चुदाई की ये जंग हराकर मिली
जिस चूत को ढूंडा उन्होंने सारे देश मै वो उनको परदेस मै जाकर मिली

जिस छेद की तलब मै उन्होंने तख्तों को नहीं बख्शा
तख्तों की चादर पर बनाया उन्होंने सड़के का नक्शा
उन्हीं तख्तों पैर चूत आज लहराकर मिली
जिस चूत को ढूंडा उन्होंने सारे देश मै वो उनको परदेस मै जाकर मिली

खून से लिखे ख़त आज भी वो जलाते मिलते है
कमरे मै आज भी वो अपना लंड हिलाते मिलते है
रहत फिर भी उनको भोसड़ी मै लंड घुसा कर मिली
जिस चूत को ढूंडा उन्होंने सारे देश मै वो उनको परदेस मै जाकर मिली


समीर जहरीला

Donnerstag, 29. Januar 2009

हम चोदते चले गए, वो चुदवाती चली गई......

हम चोदते चले गए, वो चुदवाती चली गई,
मेरे लंड पर वो अपनी भोसड़ी हिलाती चली गयी
हम चोदते चले गए, वो चुदवाती चली गई,
मेरे लंड पर वो अपनी भोसड़ी हिलाती चली गयी

जिस्म की वो नुमाइश थी, मजनुओं की ये फरमाइश थी
वो भरी महफिल मे अपनी चूत दिखाती चली गयी

हम चोदते चले गए, वो चुदवाती चली गई.....

शुरू हो चूका था वो खेल, लंड पे लगा था आज सांडे का तेल,
मेरा लौडा वो और अन्दर और अन्दर घुसाती चली गयी

हम चोदते चले गए, वो चुदवाती चली गई.....

झड़ते हुए लंड का माल वो चाहे हंस - हंस कर पीती है
लंड चाहे गरीब का चाहे किसी अमीर का लेती है
चुदवाते हुए नाम आज भी वो इस समीर का लेती है !!

समीर जेहरीला.