जिस चूत की थी उनको बचपन से तलब वो खुद बा खुद उनको आकर मिली
जिस चूत को ढूंडा उन्होंने सारे देश मै वो उनको परदेस मै जाकर मिली
चूत की बस एक झलक ने कर दिया था उनको दंग
फिर बिस्तर क्या था वो थी मैदाने जंग
राहत उनको फिर चुदाई की ये जंग हराकर मिली
जिस चूत को ढूंडा उन्होंने सारे देश मै वो उनको परदेस मै जाकर मिली
जिस छेद की तलब मै उन्होंने तख्तों को नहीं बख्शा
तख्तों की चादर पर बनाया उन्होंने सड़के का नक्शा
उन्हीं तख्तों पैर चूत आज लहराकर मिली
जिस चूत को ढूंडा उन्होंने सारे देश मै वो उनको परदेस मै जाकर मिली
खून से लिखे ख़त आज भी वो जलाते मिलते है
कमरे मै आज भी वो अपना लंड हिलाते मिलते है
रहत फिर भी उनको भोसड़ी मै लंड घुसा कर मिली
जिस चूत को ढूंडा उन्होंने सारे देश मै वो उनको परदेस मै जाकर मिली
समीर जहरीला
Freitag, 26. Juni 2009
Donnerstag, 29. Januar 2009
हम चोदते चले गए, वो चुदवाती चली गई......
हम चोदते चले गए, वो चुदवाती चली गई,
मेरे लंड पर वो अपनी भोसड़ी हिलाती चली गयी
हम चोदते चले गए, वो चुदवाती चली गई,
मेरे लंड पर वो अपनी भोसड़ी हिलाती चली गयी
जिस्म की वो नुमाइश थी, मजनुओं की ये फरमाइश थी
वो भरी महफिल मे अपनी चूत दिखाती चली गयी
हम चोदते चले गए, वो चुदवाती चली गई.....
शुरू हो चूका था वो खेल, लंड पे लगा था आज सांडे का तेल,
मेरा लौडा वो और अन्दर और अन्दर घुसाती चली गयी
हम चोदते चले गए, वो चुदवाती चली गई.....
झड़ते हुए लंड का माल वो चाहे हंस - हंस कर पीती है
लंड चाहे गरीब का चाहे किसी अमीर का लेती है
चुदवाते हुए नाम आज भी वो इस समीर का लेती है !!
समीर जेहरीला.
मेरे लंड पर वो अपनी भोसड़ी हिलाती चली गयी
हम चोदते चले गए, वो चुदवाती चली गई,
मेरे लंड पर वो अपनी भोसड़ी हिलाती चली गयी
जिस्म की वो नुमाइश थी, मजनुओं की ये फरमाइश थी
वो भरी महफिल मे अपनी चूत दिखाती चली गयी
हम चोदते चले गए, वो चुदवाती चली गई.....
शुरू हो चूका था वो खेल, लंड पे लगा था आज सांडे का तेल,
मेरा लौडा वो और अन्दर और अन्दर घुसाती चली गयी
हम चोदते चले गए, वो चुदवाती चली गई.....
झड़ते हुए लंड का माल वो चाहे हंस - हंस कर पीती है
लंड चाहे गरीब का चाहे किसी अमीर का लेती है
चुदवाते हुए नाम आज भी वो इस समीर का लेती है !!
समीर जेहरीला.
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